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कबयित्री सुशीला रोहिला ने नारी की पीड़ा रचना का किया बखान रचना पढ़ने वाले हुए सुशीला रोहिला के फैन।

                     रचना- नारी की पीड़ा

    युग युगान्तरो का है नारा
    जहाँ  नारी की हो  पुजा
   देवताओं का वास वहां
   भारत माता की धरा पर
   क्यों होती  अग्नि  परीक्षा
   

     यह कहावत  -कहावत रहीं
     नारी भोग का भक्षण  क्यों हुई
     कहीं  लुटा कही दहेज की बलि
      द्यूत के दाव पर क्यों लगी

      नारी ही क्यों दे अग्नि परीक्षा
      प्रेमी  बन कर पौरूष  दिखाता
      दरिंदा बन फिर हवस  में पीता
      जिंदा  ही क्यों  न उसे जलाया
     जिन्दा मुर्दाग्नि में  सुलगाया

    मेरा प्रश्न है  सुनो  हे विश्व जन !
     समाज में  क्यों वे पाते मान
    नारी की दुर्दशा  में  जिनका है हाथ
    कानून  की जकड़न में  लटकते
    कानून के रक्षक ही भक्षक बनते
    नपुसंक की पोशाक पहनाए उन्हें
    जीवन की सही डगर दिखाए उन्हें ।

     जब -जब नारी  के सतीत्व पर है आच॔
     द्रौपदी ,काली , अम्बे , दुर्गा बनी संहारक
    आत्मा का हनन , सद्विचार का  गमन
    मन की कोख में  जन्मते है कुविचार
     कामुक ,भोगी , आतंकी बने मुर्ख हैवान
   
   
     विकास की डगर जितनी  लम्बी
     संस्कारों की है उतनी छोटी
    मानव धर्म अपना क्यों भुला
    दूषित सोच में ही वह फुला
    कर्म ही निर्धारित करता सजा

      हे नेताओं  ,न्यायाधीशों अब ना हो देरी
      कर्म  कानून बने कुछ  ऐसा
      युगों युगों तक मां बहन की हो सुरक्षा
      तत्वज्ञान की चहूँ  ओर हो  ज्ञानशाला
      शिक्षा, राजनीति  धर्म-  कर्म का योग
     भारतमाता  विकसित  तब जाने
      मन से दूषित भाव मिटाए
      सद्भावना की शक्ति का हो संचार
     तब भारत विश्व गुरु  महान

      रचना- नारी  की पीड़ा
 लेखिका  - सुशीला रोहिला सोनीपत हरियाणा
               ( 9467520190)

   
 
   
     



 


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