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अखिलेश के वोकल समर्थकों पर कैसे भारी पड़े भाजपा के चुप्पा वोटर; इनसाइड स्टोरी

 पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन के चलते जाट बिरादरी की भाजपा से नाराजगी की बातें कही जा रही थीं। जाटों से लेकर मुस्लिमों तक में भाजपा के खिलाफ गुस्सा था और कई गांवों में उसके नेताओं का तीखा विरोध भी देखने को मिला। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान जैसे ओबीसी नेताओं के भाजपा के अलग होने के बाद से जातीय आधार पर समीकरण बनाने की कोशिश की गई थी। यही नहीं सपा के साथ ओपी राजभर के समर्थक काफी वोकल नजर आ रहे थे। एक तरफ पश्चिम यूपी में आरएलडी के समर्थक भाजपा का तीखा विरोध कर रहे थे तो वहीं राजभर ने ईस्ट यूपी में तो 'खदेड़ा होबे' का ही नारा दे दिया था।


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सपा और उसके सहयोगी दलों के समर्थकों इतने वोकल थे कि माना जा रहा था कि भाजपा को बड़ा नुकसान होगा। लेकिन चुनावी नतीजे इसके एकदम उलट रहे और बहुमत से काफी ज्यादा सीटें जीत गई और वोट प्रतिशत में तो 2017 के आंकड़े को भी पार कर लिया। आखिर इसकी क्या वजह थी? राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इसकी वजह शांत ढंग से पोलराइजेशन होना है। दरअसल पश्चिम यूपी में जाट मुस्लिम एकता की बातें जिस जोर-शोर से हुईं, उसका जितना फायदा सपा और रालोद को मिला, उससे भी अधिक लाभ भाजपा को हुआ।