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संकिसा काली नदी के किनारे प्रथम ई० में बना राजघाट चरवाहों को मिला


मेरापुर फर्रुखाबाद 


 प्रथम ई० में संकिसा स्थित काली नदी के किनारे बना पुरातत्वकाल का राजघाट चरवाहों को देखने को मिला।
मेरापुर थाना क्षेत्र के गांव पमरखिरिया के निवासी कुछ चरवाहा बीते 7 दिन पूर्व अपने जानवर नदी के किनारे चरा रहे थे। इसी दौरान उन्होंने काली नदी के किनारे पुरातत्व काल की

ईंटें लगी दिखीं । चरवाहों ने यह बात आग की तरह चारों तरफ फैला दी। सोनू राजपूत ने इसकी जानकारी अमृतपुर विधायक सुशील शाक्य को दी। श्री शाक्य ने सोमवार को नदी के

किनारे मौके पर पहुंच कर देखा। और उन्होंने वहां बताया कि यह ईंटे राजघाट की है।इसी प्रकार की ईटे स्तूप में लगीं हैं। यह बौध्द काल में संकिसा राजघाट के नाम से जाना जाता था।

और भिक्षु स्नान करते थे। इसी घाट से आवागमन होता था।
 पमरखिरिया निवासी रामवीर यादव उर्फ होंडा लाल पुत्र स्वर्गीय नत्थू लाल के संकिसा स्थित खेत की मेड़ वाली काली नदी की खाई में तीन रद्दे पुरातत्वकाल (बौध्द कालीन) की ईंटे

दिखाई दे रही हैं। देखने से पता चलता है की यह नदी के पानी के बहाव से नदी की खाई वर्षात के समय कट गई। जिससे करीब 30 ईटें उखड़ गई,जो नदी की सतह में पड़ी हैं। अब

नदी का पानी ईटों से करीब 5 फुट नीचे पहुंच जाने से वह ईटों के तीन रद्दे साफ-साफ दिखाई देने लगे हैं।
11 कदम की लंबाई में नदी की सतह में खड़े होकर देखने पर

37 ईटें दिखाई दे रही हैं। वर्तमान में खाई से पानी तक पहुंचने की गहराई करीब15 फुट से अधिक है। काली नदी पुल से उत्तर की ओर करीब ईंटों की दूरी 200 मीटर से अधिक है। और वहां से स्तूप की दूरी दो किलो मीटर है।
जब इस सम्बंध में राजघाट संकिसा जसराजपुर स्थिति वाई वी एस के राष्ट्रिय अध्यक्ष सुरेश बौध्द से मिली जानकारी के अनुसार 7 वीं शताब्दी में चीनी यात्री श्वेनशान्ग संकिसा आया था।
उसने संकिसा नगरी के संम्बंध में लेख लिखा था।जिसमें लिखा है कि प्रथम ई० में राजाओं ने काली नदी पर एक घाट बनवाया था।जिसका नाम राजघाट रखा गया था।
इस घाट से 600 मीटर की दूरी पर पूर्व की ओर एक बिहार है। जहां पर भिक्षु गण रुका करते थे।और वह इसी घाट पर स्नान करते थे।और लोगों का यहीं  से आवागमन होता था।
यह ईंटें जो नदी के किनारे दिख रहीं हैं वह बौध्द कालीन राजघाट होने का सबूत है। और उन्होंने यह भी कहा है कि खुदाई होने पर राजघाट का होना स्पष्ट हो जाएगा।
और उन्होंने इस संबंध में पुरातत्व विभाग को भी फोन द्वारा अवगत करा दिया है।
उक्त बाईवीएस सेंटर के प्रमुख भंते ज्ञान रतन ने भी बौद्ध कालीन राजघाट के अवशेष देखे। संकिसा भिक्षु संघ के अध्यक्ष डा0 धम्मपाल थेरों ने बताया कि बौद्ध काल में दीर्घशक्र संकिसा के राजा थे।
उन्होने ही राज परिवार के स्नान के लिये काली नदी के किनारे राजघाट का निर्माण कराया था। नदी पुल से करीब एक किलो मीटर क्षेत्र को आज भी राजघाट के नाम से जाना जाता है। डा0 थेरो ने पुरानी विरासत की सही जानकारी के लिये काली नदी के किनारे खुदाई करने के बाद सौन्दर्यीकरण कराकर पार्क बनाये जाने की मांग की है।
ब्यूरो रिपोर्ट सोनू राजपूत की रिपोर्ट