कसगंज–दिल्ली रूट पर टिकट घोटाले का बड़ा आरोप! फर्जी टिकटों का खेल… राजस्व को करोड़ों का चूना
कसगंज से दिल्ली रूट पर चलने वाली यूपी रोडवेज़ बसों में राजस्व चोरी और टिकट फर्जीवाड़े का मामला तेजी से उभरकर सामने आ रहा है। यात्रियों और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह पूरा खेल किसी व्यवस्थित गिरोह की तरह कई वर्षों से चल रहा है। सबसे गंभीर आरोप कसगंज से दिल्ली जाने वाली UP 78 JN 8748 बस पर तैनात एक कंडक्टर मनोज (पूरा नाम गोपनीय) के ऊपर लगाया गया है।
आरोप क्या हैं?
कसगंज–दिल्ली बस रूट के नियमित ययात्रियों का दावा है कि:-
● संबंधित कंडक्टर द्वारा: फर्जी / मिसप्रिंट टिकट यात्रियों को दिए जाते हैं ।
● प्रिंटेड टिकट स्लिप में सीरियल / बारकोड अधूरा रहता है।असली टिकट का लेखा-जोखा बस बुक में नहीं चढ़ता
● कैश का सरकारी राजस्व में अंश नहीं पहुँचता
यह सब काम अंदरखाने विभागीय संरक्षण के साथ होता है लोगों का कहना है कि कभी टिकट में कोड गायब होता है, कभी तारीख मिट चुकी होती है और कभी प्रिंट इतना हल्का कि पढ़ा भी नहीं जाता। इससे यात्री धोखे में टिकट असली मानकर सफर कर लेते हैं।
एक यात्री ने बताया :-
पूरा किराया दे रहे हैं, मगर टिकट ऐसा मिलता है जैसे किसी प्राइवेट ठेकेदार की स्लिप हो। पूछो तो धमकाते हैं।
शिकायतें हुईं… मगर कार्रवाई ढुलमुल?
कई बार शिकायतें दर्ज कराने के बाद भी विभागीय अधिकारी ARM (इंस्पेक्शन रिपोर्ट मैनेजमेंट) टीम की जांच का हवाला देकर मामले को ठंडे बस्ते में डालते रहे हैं।
सवाल उठते हैं—
आखिर जांच रिपोर्ट कहाँ फँसी है?
क्या अंदर ही कहीं सामूहिक संरक्षक मौजूद हैं?
सिस्टम में निगरानी की कमी क्यों?
यात्री कहते हैं कि कुछ अधिकारी हर बार यही बोल देते हैं:
देखेंगे… नोट कर लिया है… कार्रवाई होगी…”
लेकिन कार्रवाई कब?
इसका जवाब आज तक किसी के पास नहीं!
कितना नुकसान?
किसी भी बस में औसतन दैनिक 11000–17000 रुपये का राजस्व अलग कर लिया जाए और यह सिस्टम सालों तक चलता रहे…
तो अनुमानित नुकसान:
साल में करीब ₹ 3- 5 लाख
एक दशक में ₹ 100 लाख यानी करोड़ों से अधिक
यह सीधे-सीधे प्रदेश सरकार की आय की डकैती जैसा मामला है।
सवाल व्यवस्था पर
रोडवेज़ सरकारी सेवाओं का प्रतीक है —
लेकिन जब सिस्टम में ही सेंध लगे तो फिर जनता किस पर भरोसा करे?
● क्या परिवहन विभाग अपनी विश्वसनीयता बचा पाएगा?
● क्या ‘फील्ड में भ्रष्टाचार रोकेंगे’ वाली बातें सिर्फ पोस्टरों तक सीमित हैं
● क्या यात्रियों की आवाज़ सुनी जाएगी?
जांच एजेंसियों की ज़रूरत
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मामला अब सिर्फ विभाग का नहीं
राजस्व अपराध और आर्थिक धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है।
बस नंबरों की डिजिटल टिकटिंग ऑडिट
कंडक्टरों की सर्विलांस जांच
यात्रियों की शिकायत का ऑनलाइन डेटा सिस्टम
दोषियों पर सख्त दंड
संरक्षण देने वालों की भी जवाबदेही
जनता का सवाल — कब रुकेगा यह खेल?
कसगंज के जागरूक लोग चेतावनी दे रहे हैं:
यदि अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो हम सामूहिक शिकायत, RTI और प्रशासनिक धरना तक जाएंगे।”
लोगों की मांग है कि यह मामला खुलकर सामने आए और यदि आरोप सत्य साबित हों तो जिम्मेदार कर्मियों को कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए।
यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं —
यह सवाल प्रणाली की पारदर्शिता और जनविश्वास का है।
शब्दों में नहीं, कार्रवाई में सच्चाई दिखनी चाहिए।




