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एटा जनपद में हरियाली पर कुठाराघात: मिरहची नर्सरी के पास सागौन के दर्जनों पेड़ कटे, वन विभाग मौन।

 


एटा (उत्तर प्रदेश)

जिला एटा के मारहरा क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण की तमाम सरकारी योजनाओं और हरी झंडी दिखाने वाले अभियानों के बावजूद, हरे-भरे पेड़ों पर लगातार कुल्हाड़ी चल रही है। ताज़ा मामला मारहरा नर्सरी के पास का है, जहाँ बीते कुछ दिनों में लगभग 15 से 20 हरे सागौन (टीक) के पेड़ों का अवैध कटान किया गया है। इन पेड़ों की कीमत लाखों रुपये में आँकी जा रही है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी पर्यावरणीय क्षति के बाद भी वन विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई देखने को नहीं मिली है।



घटना स्थल: मिरहची से मारहरा रोड पर नर्सरी के पास इंटरलॉकिंग प्लांट के सामने रोड पर आगे चलकर मोड़ है वहां से सीधे कच्चे रास्ते पर लगभग 100 मीटर आगे बाग के पास सागौन का मेडा कट रहा है।


हरियाली की जगह अब ठूंठ...?


स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, मारहरा नर्सरी के आसपास का क्षेत्र कभी हरियाली से भरपूर था। सड़क के दोनों ओर लगे सागौन के पेड़ न केवल सौंदर्य बढ़ाते थे बल्कि गर्मी के मौसम में राहगीरों को छाया भी देते थे। परंतु अब वहीं पर पेड़ों के ठूंठ दिखाई दे रहे हैं।

ग्रामीणों ने बताया कि रात के अंधेरे में कुछ अज्ञात लोगों द्वारा पेड़ों को काटा गया और ट्रैक्टर-ट्रॉली में भरकर ले जाया गया। कटान इतनी व्यवस्थित तरीके से किया गया कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह सब किसी योजनाबद्ध गिरोह का काम हो।


स्थानीयों का आरोप: मिलीभगत के बिना संभव नहीं


गांववालों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में हरे सागौन के पेड़ काटे जाएँ और वन विभाग को इसकी भनक तक न लगे — यह बात हजम नहीं होती। स्थानीय निवासी राजेश यादव बताते हैं,


> “यह कटान रात के समय हुआ। सागौन जैसे कीमती पेडों को काटने में घंटों लगते हैं, लेकिन विभाग की कोई गश्त टीम नहीं पहुंची। इससे साफ है कि या तो लापरवाही है या फिर अंदरखाने मिलीभगत।”





एक अन्य ग्रामीण, सीमा देवी का कहना है,


> “हमने कई बार पेड़ कटने की आवाजें सुनीं और शिकायत करने की कोशिश की, लेकिन वन विभाग के अधिकारी फोन नहीं उठाते। सुबह जब देखा तो पूरे इलाके के पेड़ गायब थे।”




सागौन का महत्व और नुकसान का आकलन


सागौन एक अत्यंत कीमती और लंबे समय तक टिकाऊ लकड़ी वाला पेड़ है, जिसका उपयोग फर्नीचर, दरवाजे, खिड़कियाँ और भवन निर्माण में किया जाता है। एक परिपक्व सागौन का पेड़ लाखों रुपये का हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, 15 से 20 पेड़ों की कटाई से न केवल आर्थिक नुकसान हुआ है बल्कि पर्यावरणीय संतुलन पर भी गहरा असर पड़ेगा।

वन विशेषज्ञ डॉ. अमरनाथ शर्मा बताते हैं,


> “सागौन जैसे पेड़ एक बार काटे जाने के बाद दशकों में तैयार होते हैं। यह न केवल ऑक्सीजन देते हैं बल्कि मिट्टी के क्षरण को भी रोकते हैं। इनके कटान से स्थानीय जैव विविधता पर भी प्रभाव पड़ेगा।”




वन विभाग की चुप्पी पर सवाल


जब इस मामले पर वन विभाग के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई, तो किसी ने स्पष्ट जवाब नहीं दिया। विभाग के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें मामले की जानकारी मिली है और जांच की जा रही है।

हालांकि, घटनास्थल पर न तो कोई सर्वे टीम पहुंची है और न ही कोई एफआईआर दर्ज होने की पुष्टि हुई है। इस लापरवाही ने स्थानीय लोगों के बीच विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।


पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आक्रोश


पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मिश्रा ने कहा,


> “यह सिर्फ पेड़ों की कटाई नहीं है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों से ऑक्सीजन छीनने जैसा अपराध है। अगर इस मामले में तुरंत कार्रवाई नहीं हुई तो हम उच्च अधिकारियों और पर्यावरण मंत्रालय तक शिकायत पहुँचाएँगे।”




उन्होंने यह भी बताया कि प्रदेश सरकार हर साल वृक्षारोपण अभियान चलाती है, करोड़ों पौधे लगाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन जब पहले से लगे पेड़ों की सुरक्षा ही नहीं हो पा रही है, तो ये अभियान कागजी साबित हो रहे हैं।


स्थानीय प्रशासन से कार्रवाई की मांग


ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए, और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। कई ग्रामीणों ने यह भी कहा कि इलाके में वन विभाग की गश्त बढ़ाई जाए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ न हों।


सरकारी योजनाओं पर सवालिया निशान


राज्य सरकार हर साल “वन महोत्सव”, “मिशन वृक्षारोपण, हरित क्रांति योजना” जैसी योजनाओं के माध्यम से हरियाली बढ़ाने के प्रयास करती है। परंतु जब ऐसे घटनाक्रम सामने आते हैं तो यह सभी योजनाएँ खोखली लगती हैं।

मारहरा क्षेत्र के पास का यह कटान इस बात का उदाहरण है कि जमीनी स्तर पर न तो निगरानी व्यवस्था सख्त है और न ही जवाबदेही तय की गई है।



पर्यावरणीय संतुलन पर प्रभाव


विशेषज्ञों के अनुसार, इतनी बड़ी संख्या में सागौन जैसे परिपक्व पेड़ों की कटाई से स्थानीय तापमान में वृद्धि, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट और पक्षियों व छोटे जीवों के आवास नष्ट होने जैसी समस्याएँ उत्पन्न होंगी।

मारहरा नर्सरी के आसपास पहले जहां हरियाली थी, अब वहां खुले मैदान और सूखी धूल उड़ती दिखाई देती है।


ग्रामीणों की चेतावनी: अगर कार्रवाई नहीं हुई तो करेंगे आंदोलन


ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि 7 दिनों के भीतर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो वे धरना प्रदर्शन करेंगे और जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर आंदोलन शुरू करेंगे।

स्थानीय युवाओं ने भी पेड़ बचाओ अभियान चलाने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि अगर प्रशासन नहीं जागा तो वे स्वयं क्षेत्र में निगरानी रखेंगे।


निष्कर्ष


मारहरा नर्सरी के पास हुए इस सागौन कटान ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि कानून और पर्यावरण संरक्षण की बातें सिर्फ कागजों में सीमित रह गई हैं। जब तक वन विभाग अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाता और दोषियों को सजा नहीं मिलती, तब तक ऐसी घटनाएँ रुकना मुश्किल है।

हर पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं — बल्कि जीवन, हवा और धरती का अस्तित्व है। अगर हरे पेड़ इस तरह बेरहमी से काटे जाते रहे तो आने वाले समय में एटा ही नहीं, बल्कि पूरा प्रदेश हरियाली खो देगा।